सुअर पालन व्यवसाय

सुअर पालन व्यवसाय

सुअर पालन व्यवसायसुअर पालन व्यवसाय , रोजगार के रूप में करने से काफी अधिक लाभ हो सकता है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की व्यवस्था करना अति आवश्यक है। भोजन के रूप में अनाज एवं मांस, दूध, मछली, अंडे इत्यादि का प्रयोग होता है। जहाँ सिंचाई के अभाव में एक ही फसल खेत से लाना संभव है, वैसी हालत में साल के अधिक दिनों में किसान बिना रोजगार के बैठे रहते है। यह बेकार का बैठना गरीबी का एक मुख्य कारण है इस समय का सदुपयोग हमलोग सुअर पालन व्यवसाय के माध्यम से कर सकते हैं; अत: सुअर पालन व्यवसाय गरीबी दूर करने में सफल हो सकती है ।लोग मुर्गी, सुअर, गाय, भैंस एवं बकरी आवश्य पालते हैं लेकिन इनके उन्न्त नस्ल तथा आधुनिक पशुपालन के तरीके का अभाव में पूरा पशुपालन  का पूरा  फायदा नहीं हो पाता है।

सुअर पालन व्यवसाय एक लाभदायक व्यवसाय क्यों और कैसे ?

अपने देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए केवल अनाज का उत्पादन बढ़ाना ही आवश्यक  नहीं है । पशुपालन में लगे लोगों का यह उत्तरदायित्व हो जाता है कि कुछ ऐसे ही पौष्टिक खाद्य पदार्थ जैसे- मांस, दूध, अंडे, मछली इत्यादि के उत्पादन बढ़ाए जाए जिससे अनाज के उत्पादन पर का बोझ हल्का हो सके । मांस का उत्पादन थोड़े समय में अधिक बढ़ने में सुअर पालन व्यवसाय का स्थान सर्वप्रथम आता है । इस दृष्टि से सुअर पालन का व्यवसाय अत्यंत लाभदायक है । एक किलोग्राम मांस बनाने में जहाँ गाय, बैल आदि मवेशी को 10-20 किलोग्राम खाना देना पड़ता है, वहां सुअर को 4-5 किलोग्राम भोजन की ही आवश्यकता होती है।

मादा सुअर प्रति 6 महीने में बच्चा दे सकती है और उसकी देखभाल अच्छी ढंग से करने पर 10-12 बच्चे लिए जा सकते हैं । दो माह के बाद से वे माँ का दूध पीना बंद कर देते हैं और इन्हें अच्छा भोजन मिलने पर 6 महीने में 50-60 किलोग्राम तक वजन के हो जाते हैं यह गुण तो उत्तम नस्ल की विदेशी सुअरों द्वारा ही अपनाया जा सकता है । ऐसे उत्तम नस्ल के सुअर अपने देश में भी बहुतायत में पाले एवं वितरित किए जा रहे हैं । दो वर्ष में इनका वजन 150-200 किलोग्राम तक जाता है।

आहारशास्त्र की दृष्टि से सोचने पर सुअर के मांस द्वारा हमें बहुत ही आवश्यक एवं अत्यधिक प्रोटीन की मात्रा प्राप्त होती है। अन्य पशुओं की अपेक्षा सुअर घटिया किस्म के खाद्य पदार्थ जैसे- सड़े हुएफल, अनाज, रसोई घर की जूठन सामग्री, फार्म से प्राप्त पदार्थ, मांस, कारखानों से प्राप्त अनुपयोगी पदार्थ इत्यादि को यह भली-भांति उपयोग लेने की क्षमता रखता है। हमारे देश की अन्न समस्या सुअर पालन व्यवसाय से इस प्रकार हाल की जा सकती है ।अच्छे बड़े सुअर साल में करीब 1 टन खाद दे सकते हैं।इसके बाल ब्रश बनाने के काम आते है, इन लाभों से हम विदेशी मुद्रा में भी बचत कर सकते हैं।

सुअर पालन व्यवसाय लिए आवास की व्यवस्था :

आवास आधुनिक ढंग से बनाए जायें ताकि साफ सुथरे तथा हवादार हो,भिन्न- भिन्न उम्र के सुअर के लिए अलग – अलग कमरा होना चाहिए। ये इस प्रकार हैं –

) प्रसूति सुअर आवास :

यह कमरा साधारणत: 10 फीट लम्बा और 8 फीट चौड़ा होना चाहिए तथा इस कमरे से लगे इसके दुगुनी क्षेत्रफल का एक खुला स्थान होना चाहिए । बच्चे साधारणत: दो महीने तक माँ के साथ रहते हैं। करीब 4 सप्ताह तक वे माँ के दूध पर रहते हैं। इस की पश्चात वे थोड़ा खाना आरंभ कर देते हैं। अत: एक माह बाद उन्हें बच्चों के लिए बनाया गया इस बात ध्यान रखना चाहिए । ताकि उनकी वृद्धि तेजी से हो सके। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सुअरी बच्चे के खाना को न सके । इस तरह कमरे के कोने को तार के छड़ से घेर कर आसानी से बनाया जाता है ।जाड़े के दिनों में गर्मी की व्यवस्था बच्चों के लिए आवश्यक है।प्रसूति सुअरी के गृह में दिवार के चारों ओर दिवार से 9 इंच अलग तथा जमीन से 9 इंच ऊपर एक लोहे या काठ की 3 इंच से 4 इंच मोटी बल्ली की रूफ बनी होती है, जिसे गार्ड रेल कहते हैं। छोटे-छोटे सुअर बचे अपनी माँ के शरीर से दब कर अक्सर मरते हैं, जिसके बचाव के लिए यह गार्ड रेल आवश्यक है।

) गाभिन सुअरी के लिए आवास :

इन घरों ने वैसी सुअरी को रखना चाहिए, जो पाल खा चुकी हो ।अन्य सुअरी के बीच रहने से आपस में लड़ने या अन्य कारणों से गाभिन सुअरी को चोट पहुँचने की आंशका रहती है जिससे उनके गर्भ को नुकसान हो सकता है।प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी को आसानी से रखा जा सकता है।प्रत्येक गाभिन सुअरी को बैठने या सोने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए। रहने के कमरे में ही उसके खाने पीने के लिए नाद होना चाहिए तथा उस कमरे से लेगें उसके घूमने के लिए एक खुला स्थान होना चाहिए।

) विसूखी सुअरी के लिए आवास :

जो सुअरी पाल नहीं खाई हो या कूंआरी सुअरी को ऐसे मकान में रखा जाना चाहिए। प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी तक रखी जा सकती है। गाभिन सुअरी घर के समान ही इसमें भी खाने पीने के लिए नाद एवं घूमने के लिए स्थान होना चाहिए । प्रत्येक सुअरी के सोने या बैठने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए।

) नर सुअर के लिए आवास :

नर सुअर जो प्रजनन के काम आता है उन्हें सुअरी से अलग कमरे में रखना चाहिए। प्रत्येक कमरे में केवल एक नर सुअर रखा जाना चाहिए । एक से ज्यादा एक साथ रहने आपस में लड़ने लगते हैं एवं दूसरों का खाना खाने की कोशिश करते हैं नर सुअरों के लिए 10 फीट x 8 फीट स्थान देना चाहिए । रहने के कमरे में खाने पीने के लिए नाद एवं घूमने के लिए कमरे से लगा खुला स्थान जोना चाहिए ।

) बढ़ रहे बच्चों के लिए आवास :

दो माह के बाद साधारण बच्चे माँ से अलग कर दिए जाते हैं एवं अलग कर पाले जाते हैं । 4 माह के उम्र में नर एवं मादा बच्चों को अलग –अलग कर दिया जाता है । एक उम्र के बच्चों को एक साथ रखना अच्छा होता है।ऐसा करने से बच्चे को समान रूप से आहार मिलता है एवं समान रूप बढ़ते हैं। प्रत्येक बच्चे के लिए औसतन 3 x 4 फीट स्थान होना चाहिए तथा रात में उन्हें सावधानी में कमरे में बंद कर देना चाहिए।

सुअरों के लिए आहार :

पूरा फायदा उठाने के लिए खाने पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है ।ऐसा देखा गया है कि पूरे खर्च का 75 प्रतिशत खर्च उसके खाने पर होता है । सुअर के जीवन के प्रत्येक पहलू पर खाद्य संबंधी आवश्यकता अलग- अलग होती है । बढ़ते हुए बच्चों एवं प्रसूति सुअरों को प्रोटीन की अधिक मात्रा आवश्यक होती है अत: उनके भोजन में प्रोटीन की अधिक मात्रा 19 प्रतिशत या उससे अधिक ही रखी जाती है।

खाने में मकई, मूंगफली कि खल्ली, गेंहूं के चोकर, मछली का चूरा, खनिज लवण, विटामिन एवं नमक का मिश्रण दिया जाता है। इसके मिश्रण को प्रारंभिक आहार, बढ़ोतरी आहार प्रजनन आहार में जरूरत के अनुसार बढ़ाया आहार में जरूरत के अनुसार बढ़ाया – घटाया जाता है।गुलर फल पौष्टिक तत्व हैं। इसे सूखाकर रखने पर इसे बाद में भी खिलाया जा सकता है। सखूआ बीज, आम गुठली एवं जामुन का बीज भी सुअर अच्छी तरह खाते हैं ।अमरुद एवं केंदू भी सोअर बड़ी चाव से खाते हैं।माड़ एवं हडिया का सीठा जिसे फेंक देते हैं, सुअरों को अच्छी तरह खिलाया जा सकता है।

सुअर पालन व्यवसाय लिए दवा और टॉनिक :

सुअर को महीने में एक बार, निम्नांकित दवा अवश्य दें ,ये दवाएं १०० % प्रभावकारी है ,इसकी हम गारंटी देतें हैं !

ग्रोलिवफोर्ट  Growlive Forte :प्रति सुअर  महीने में ग्रौलिव फोर्ट दस दिनों तक अवस्य दें ।ग्रोलिवफोर्ट के अनेको फायेदें हैं । यह दवा सुअरों के लिवर और किडनी को स्वस्थ रखता है और किसी भी लिवर और किडनी से सम्बंधित बीमारी से बचाता है । सूकरों को दस्त और कब्ज की स्थिति में काफी फायदेमंद है और उनका उपचार करता है । सुअरों के खाने की छमता को बढ़ाता है और जो दाना सुअर खातें हैं वो उनके शरीर में तुरंत काम करता है और सुअरों के खाने के खर्चे में कमी आती है । सुअरों के पाचन शक्ति को काफी मजबूत करता है। सुअरों में फ़ीड रूपांतरण अनुपात को बढ़ाता है।सुअरों में दूध बढाने में मदद करता है।

अमीनो पॉवर Amino Power: प्रति सुअर महीने में अमीनो पॉवर दस दिनों तक अवस्य दें ।अमीनो पॉवर 46 शक्तिशाली अमीनो एसिड, विटामिन और खनिज का एक अनोखा मिश्रण है और इसके उल्लेखनीय परिणाम है।
यह एक सुपर और शक्तिशाली टॉनिक है जो सुअरों के तेजी से वजन बढ़ने, स्वस्थ विकास रोगों प्रतिरोधी के लिए काफी उपयोगी है । विटामिन , प्रोटीन और सूअरों में पोषण संबंधी विकारों के सुधार के लिए काफी उपयोगी हैं।
किसी भी तनाव और बीमारियों के बाद एक त्वरित ऊर्जा बूस्टर के रूप में काम करता हैं ।सुअरों में दूध बढाने में मदद करता है ।

विराक्लीन  Viraclean: विराक्लीन सूअरों के फार्म में और उनके फार्म के आस-पास हमेशा छिडकावं करनी चाहिए ।विराक्लीन सूअरों के फार्म को कीटाणुरहित रखता है और बिमारियों के संक्रमण को रोकता है।सूअरों के नाद को समय -समय पर विराक्लीन से धोना चाहिए ।

सूकरों का प्रजनन :

नर सुअर 8-9 महीनों में पाल देने लायक जो जाते हैं । लेकिन स्वास्थ ध्यान में रखते हुए एक साल के बाद ही इसे प्रजनन के काम में लाना चाहिए ।  सप्ताह में 3-4 बार इससे प्रजनन काम लेना चाहिए ।  मादा सुअर भी करीब एक साल में गर्भ धारण करने लायक होती है ।

सुअर पालन व्यवसाय में बीमारियों की रोकथाम :

सुअर पालन व्यवसाय में बीमारियों की रोकथाम एक बहुत ही प्रमुख विषय है  । इस पर समुचित ध्यान नहीं देने से हमें समुचित फायदा नहीं मिल सकता है रोगों का पूर्व उपचार करना बीमारी के बाद उपचार कराने से हमेशा अच्छा होता है ।  इस प्रकार स्वस्थ शरीर पर छोटी मोटी बिमारियों का दावा नहीं लग पाता।यदि सुअरों के रहने का स्थान साफ सुथरा हो, साफ पानी एवं पौष्टिक आहार दिया जाए तब उत्पादन क्षमता तो बढ़ती ही है ।  साथ ही साथ बीमारी के रूप में आने वाले परेशानी से बचा जा सकता है।सूकरों की पिने पानी में नियमित रूप से Aquacure (एक्वाक्योर) मिलाना चाहिये, यह पानी की अशुद्धियों को ख़त्म कर देता है और सूकरों को रोग से बचाता है

क) आक्रांत या संदेहात्मक सुअर की जमात रूप से अलग कर देना चाहिए । वहाँ चारा एवं पानी का उत्तम प्रबंध होना आवश्यक है । इसके बाद पशु चिकित्सा के सलाह पर रोक थाम का उपाय करना चाहिए ।

ख) रोगी पशु की देखभाल करने वाले व्यक्ति को हाथ पैर जन्तूनाशक दवाई से धोकर स्वस्थ पशु के पास जाना चाहिए ।

ग) जिस घर में रोगी पशु रहे उसके सफाई नियमित रूप से विराक्लीन  Viraclean से करना चाहिए ।

घ) रोगी प्शूओन्न के मलमूत्र में दूषित कीटाणु रहते हैं ,अत: गर्म रख या जन्तु नाशक दवा से मलमूत्र में रहने वाले कीटाणु को नष्ट करना चाहिए। अगर कोई पशु संक्रामक रोग से मर जाए तो उसकी लाश को गढ़े में अच्छी तरह गाड़ना चाहिए । गाड़ने के पहले लाश पर तथा गढ़े में चूना एवं ब्लीचिंग पाउडर भर देना चाहिए जिससे रोग न फ़ैल सके ।

सुअरों के कुछ संक्रामक रोग निम्नलिखित हैं :

क) सूकर ज्वर

इसमें तेज बुखार, तन्द्र, कै और दस्त का होना, साँस लेने में कठिनाई होना, शरीर पर लाला तथा पीले धब्बे निकाल आना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।समय-समय पर टीका लगवा कर इस बीमारी से बचा जा सकता है ।

ख) सूकर चेचक

बुखार होना, सुस्त पड़ जाना, भूख न लगना, तथा कान, गर्दन एवं शरीर के अन्य भागों पर फफोला पड़ जाना, रोगी सुअरों का धीरे धीरे चलना, तथा कभी-कभी उसके बाल खड़े हो जाना बीमारी के मुख्य लक्षण है ।टीका लगवाकर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है ।

ग) सुअरों में खुर मुंह पका

बुखार हो जाना, खुर एवं मुंह में छोटे-छोटे घाव हो जाना, सुअर का लंगड़ा का चलना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं । मुंह में छाले पड़ जाने के कारण खाने में तकलीफ होती है तथा सुअर भूख से मर जाता है ।खुर के घावों पर फिनाईल मिला हुआ पानी लगाना चाहिए तथा नीम की पत्ती लगाना लाभदायक होता है । टीका लगवाने से यह बीमारी भी जानवरों के पास नहीं पहुँच पाती है ।

घ) सुअरों में एनये पील्ही ज्वर

इस रोग में ज्वर बढ़ जाता है ,नाड़ी तेज जो जाती है ,हाथ पैर ठंडे पड़ जाते हैं, पशु अचानक मर जाता है ,पेशाब में भी रक्त आता है ।इस रोग में सुअर के गले में सृजन हो है, टीका लगवा कर इस बीमारी से बचा जा सकता है।

ङ) सुअरों में एरी सीपलेस

तेज बुखार, खाल पर छाले पड़ना, कान लाल हो जाना तथा दस्त होना इस बीमारी को मुख्य लक्षण हैं । रोगी सुअर को निमोनिया का खतरा हमेशा रहता है । रोग निरोधक टीका लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है ।

च) सुअरों में यक्ष्मा

रोगी सुअर के किसी अंग में गिल्टी फूल जाती है जो बाद में चलकर फूट जाता है तथा उससे मवाद निकलता है| इसके अलावे रोगी सुअर को बुखार भी आ जाता है। इस सुअर में तपेदिक के लक्षण होने लगते हैं, उन्हें मार डाल जाए तथा उसकी लाश में चूना या ब्लीचिंग पाउडर छिड़क कर गाड़ किया जाए।

छ) सुअरों में पेचिस

रोगी सुअर सुस्त होकर हर क्षण लेटे रहना चाहता है,उसे थोड़ा सा बुखार हो जाता है तथा तेजी से दुबला होने लगता है। हल्के सा पाच्य भोजन तथा साफ पानी देना अति आवश्यक है, रोगी सुअर को अलग- अलग रखना तथा पेशाब पैखाना तुरंत साफ कर देना अति आवश्यक है।

सुअरों में परोपजीवी और पोषाहार से सम्बंधित रोग :

सुअरों में ढील अधिक पायी जाती है। जिसका इलाज विराक्लीन  Viraclean के छिड़काव से किया जा सकता है। सुअर के गृह के दरारों एवं दीवारों पर विराक्लीन  Viraclean का छिड़काव करना चाहिए। सुअरों में खौरा नामक बीमारी अधिक होता है जिसके कारण दीवालों में सुअर अपने को रगड़ते रहता है । अत: इसके बचाव के लिए सुअर गृह से सटे, घूमने के स्थान पर एक खम्भा गाड़ कर कोई बोरा इत्यादि लपेटकर उसे गंधक से बने दवा से भिगो कर रख देनी चाहिए, ताकि उसमें सुअर अपने को रगड़े तथा खौरा से मुक्त हो जाए ।

सुअर के पेट तथा आंत में रहने वाले परोपजीवी जीवों को मारने के लिए प्रत्येक माह पशु चिकित्सक की सलाह से परोपजीवी मारक दवा पिलाना चाहिए, अन्यथा यह परोपजीवी हमारे लाभ में बहुत बड़े बाधक सिद्ध होगें ।

पक्का फर्श पर रहने वाली सुअरी जब बच्चा देती है तो उसके बच्चे में लौह तत्व की कमी अक्सर पाई जाती है। इस बचाव के लिए प्रत्येक प्रसव गृह के एक कोने में टोकरी साफ मिट्टी में हरा कशिस मिला कर रख देना चाहिए सुअर बच्चे इसे कोड़ कर लौह तत्व चाट सकें।

सूअर पालन में ध्यान देने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बातें :

  1. प्रसूति सुअर से बच्चों को उनके जरूरत के अनुसार दूध मिल पाता है या नहीं अगर तो दूध पिलाने की व्यवस्था उनके लिए अलग से करना चाहिए, अन्यथा बच्चे भूख से मर जाएंगें ।
  2. नवजात बच्चों के नाभि में आयोडीन टिंचर लगा देना चाहिए ।
  3. सुअरों का निरिक्षण 24 घंटो में कम से कम दो बाद अवश्य करना चाहिए।
  4. कमजोर सुअर के लिए भोजन की अलग व्यवस्था करनी चाहिए।
  5. आवास की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए ।सुअरों के बाड़े में हमेशा विराक्लीन  Viraclean का छिड़काव करते रहनी चाहिए।
  6. प्रत्येक सुअर बच्चा या बड़ा भली भांति खाना खा सके, इसकी समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।
  7. एक बड़े नर सुअर के लिए दिन भर के के लिए 3-4 किलो खाने की व्यवस्था होना चाहिए।
  8. एक बार में मादा सुअर 14 से 16 बच्चे दे सकती है अगर उचित व्यवस्था की जाए तो एक मादा सुअरी साल में बार बच्चा दे सकती है।
  9. सुकर ज्वर एवं खुर मुंह पका का का टीका वर्ष में 1 बार जरूर लगा लेना चाहिए।
  10. बच्चों को अलग करने के 3-4 दिन के अंतर में ही सुअरी गर्भ हो जाती है और यदि सुअरी स्वस्थ हालत में हो तो उससे साल में 2 बार बच्चा लेने के उद्देश्य से तुरंत पाल दिला देना चाहिए।
  11. सूअरियों नका औसतन 12, 14 बाट (स्तन) होते हैं। अत: प्रत्येक स्तन को पीला कर इतनी ही संख्या में बच्चों को भली भांति पालपोस सकती है। सूअरियों को आगे की ओर स्तन में दूध का प्रवाह बहुधा पीछे वाले स्तन से अधिक होता है। अत; आगे का स्तन पीने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ होता है ।यदि पीछे का स्तन पीने वाला बच्चा कमजोर होता जा रहा है तो यह प्रयास करना चाहिए कि 2-3 दिन तक आगे वाला बात दूध पीने के समय पकड़वा दिया जाय ताकि वह उसे पीना शुरू कर दे। अगर आप उपयुक्त बातों को ध्यान देंगें तो आप एक सफल सूअर पालक बन सकतें हैं और सूअर पालन के ब्यवसाय में अधिक से अधिक लाभ कमा सकतें हैं । कृपया आप इस लेख को भी पढ़ें  सूअर पालकों की सफलता की कहानी ,उन्ही के जुबानी ! 

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