पशुओं में बांझपन : कारण और निवारण

पशुओं में बांझपनपशुओं में बाँझपन की स्थिति पशुपालकों के लिए बहुत बड़े आर्थिक नुकसान का कारण  है ।डेयरी फार्मिंग और डेयरी उद्योग में बड़े नुकसान के लिए पशुओं का बांझपन ज़िम्मेदार है।बांझ पशु को पालना एक आर्थिक बोझ होता है और ज्यादातर देशों में ऐसे जानवरों को बूचड़खानों में भेज दिया जाता है।पशुओं में, दूध देने के 10-30 प्रतिशत मामले बांझपन और प्रजनन विकारों से प्रभावित हो सकते हैं।अच्छा प्रजनन या बछड़े प्राप्त होने की उच्च दर हासिल करने के लिए नर और मादा दोनों पशुओं को अच्छी तरह से खिलाया-पिलाया जाना चाहिए और रोगों से मुक्त रखा जाना चाहिए।

पशुओं में बांझपन के कारण :

पिछले कई दशकों से यह पाया गया है कि जैसे-जैसे दूधारू पशुओं के दुग्ध उद्पादन में वृद्धि हुई है वैसे-वैसे प्रजनन क्षमता में गिरावट हुई है।दूधारू पशुओं की दूध उत्पादन की क्षमता प्रत्यक्ष रूप से उनकी प्रजनन क्षमता पर निर्भर करती है।पशुओं में अस्थायी रूप से प्रजनन क्षमता के घटने की स्थिति को बाँझपन कहते है । बाँझपन की स्थिति में दुधारू गाय अपने सामान्य ब्यांत अंतराल (12 माह) को क़ायम नहीं रख पाती । सामान्य ब्यांत अंतराल को क़ायम रखने के लिए पशु ब्याने के बाद 45-60 दिनों के मध्यांतर मद में आ जाना चाहिए और 100 दिनों के भीतर गाभिन हो जाना चाहिए ।

बांझपन के कारण कई हैं और वे जटिल हो सकते हैं।बांझपन या गर्भ धारण कर एक बच्चे को जन्म देने में विफलता, मादा में कुपोषण, संक्रमण, जन्मजात दोषों, प्रबंधन त्रुटियों और अंडाणुओं या हार्मोनों के असंतुलन के कारण हो सकती है।पशुओं में बांझपन का प्रमुख कारण है पोषण की कमी।ऐसा पाया गया है कि खनिज तत्‍वों और जिंक की कमी के कारण पशु गर्भित नहीं हो पाते हैं।यदि पशु ब्याने के 60 दिनों के बाद भी मद (गर्मी) में नहीं आता है तो पशु की पशुचिकित्सक से जांच करानी चाहिए और वह सब उपाए करने चाहिए जिससे की पशु जल्द से जल्द मद में आ जाये ।

दूधारू पशुओं में बाँझपन की स्थिति के लिए चार प्रमुख कारण जिम्मेदार है :

(1) पशुओं में जन्मजात बाँझपन या अनुवांशिक बाँझपन (2) पशुओं में कार्यात्मक बाँझपन (3) पशुओं में संक्रामक बाँझपन (4) पशुओं में प्रबंधन एवं पोषण से संबंधित बाँझपन 

1. पशुओं में जन्मजात या अनुवांशिक बाँझपन: इसके अंतर्गत अंडाशय (ओवरी) का अविकसित होना, अंडाशय में पुटक (फॉलिकल) की संख्या कम होना या पुटक रहित अंडाशय का होना, बैला गाय या फ़्रीमार्टिन की स्थिति होना, प्रजनन अंग का खण्डयुक्त (अधूरा) विकसित होना, द्विलिंग इत्यादि दोष सम्मिलित है ।

2. पशुओं में कार्यात्मक बाँझपन: इस तरह का बाँझपन पशुओं में अंतःस्रावी (एंडोक्रिनोलॉजिकल) अव्यवस्था की वजह से होता है । इसके अंतर्गत अप्रत्यक्ष मद, मौन मद, यथार्थ मद में ना आना (ट्रू अनेस्ट्रस), विलंबित डिंबक्षरण (ओवुलेशन),सिस्टिक अंडाशय इत्यादि जैसे दोष सम्मिलित है ।

3. पशुओं में संक्रामक बाँझपन: यह बाँझपन विशिष्ट (स्पेसिफिक) संक्रमण या अनिर्दिष्ट (नॉन स्पेसिफिक) संक्रमण की वजह से होता है । अनिर्दिष्ट संक्रमण अधिकांश पशुओं में अकसर पहले से ही मौजूद होता है । यह संक्रमण संपूर्ण पशु समूह की अपेक्षा अकेले पशु को प्रभावित करता है ।अनिर्दिष्ट संक्रमण की वजह से अंडाशय में सूजन, डिंबवाही नलिका में सूजन, गर्भाशयशोथ (बच्चेदानी में सूजन), गर्भाशयग्रीवाशोथ (बच्चेदानी के मुँह में सूजन), योनिशोथ (योनि में सूजन) व गर्भपात जैसी समस्या हो सकती है । विशिष्ट संक्रमण पशुस्थानिक महामारी के रूप में होता है जिस वजह से पशुओं का समस्त समूह प्रभावित हो सकता है । विशिष्ट संक्रमण के अंतर्गत ट्रिकोमोनिआसिस, विब्रिओसिस, ब्रुसलोसिस, ट्यूबरक्लोसिस, आई.पी.वी.-आई.पी.आर., एपीवेग इत्यादि जैसे रोग सम्मिलत है ।

4. पशुओं में प्रबंधन से संबंधित बाँझपन: बाँझपन का यह कारण सबसे प्रचलित है जो की पोषण संबंधी और मद को उसके सही समय या सही स्थिति को ना पहचाने की वजह से होता है ।

पशुओं में बाँझपन का निवारण ;दूधारू पशुओं में बाँझपन की स्थिति का निवारण बांझपन के कारण पर निर्भर करता है:

1. पशुओं में जन्मजात/ संरचनात्मक/ अनुवांशिक बाँझपन का निवारण :

पशुओं में अविकसित अंडाशय: इस स्थिति की पहचान पशु के यौवनारम्भ समय (प्यूबर्टी) पर होती है । ग्रस्त पशु मद अभिव्यक्त करने में असफल होता है । ऐसी स्थिति में पशु को समूह से छांट देना चाहिये ।

पुटक रहित अंडाशय/ अंडाशय हाइपोप्लैसिआ: इस अवस्था में एक अंडाशय या दोनों अंडाशय प्रभावित हो सकती है । इस अवस्था से ग्रस्त पशु को प्रजनन के लिए उपयोग में नहीं लाना चाहिए क्योंकि यह अवस्था माँ से संतान को संचरित होती है । ऐसी स्थिति से ग्रस्त पशु को समूह से छांट देना चाहिये ।

फ़्रीमार्टिन: यह परिस्थिति गाय में जुड़वाँ बछड़ों के पैदा होने के कारण होती है जिसमे एक नर बछड़ा और दूसरा मादा बछड़ा पैदा होता है और मादा बछड़ा 92 -95% मामलों में बाँझ होता है । फ़्रीमार्टिन गाय में अंडाशय एवं जननांग अनुपस्थित होते है,योनि का कुछ भाग मूत्रमार्ग के मुंह तक मौजूद होता है और केवल स्त्री-बाह्यजननांग (वुलवा) की ही सामान्य स्थिति होती है।ग्रस्त पशु कभी भी मद में नहीं आते, उनका भग-शिश्न (क्लिटोरिस) बाहर निकला हुआ एवं स्त्री-बाह्यजननांग पर लंबे बाल के गुच्छे होते है ।इस स्थिति की पहचान पशु के यौवनारम्भ समय पर होती है एवं फ़्रीमार्टिन गाय का कोई इलाज नहीं है, इसलिए ऐसे पशु को समूह से छांट देना चाहिये ।

खण्डयुक्त प्रजनन अंग या सफ़ेद बछिया रोग: यह अवस्था शार्ट हॉर्न नस्ल की सफ़ेद रंग की बछड़ी में पायी जाती है जिसमे अंडाशय एवं मदचक्र सामान्य होता है । इस अवस्था में संकुचित हैमेन मौजूद होता है एवं अगली योनि और बच्चेदानी का मुँह या बच्चेदानी का शरीर सब अनुपस्थित होते है ।हलाकि गर्भाशय शृंग सामान्य होते है और मद के होने की वजह से गर्भाशय शृंग में चिप-चिपा गाढ़ा पदार्थ जमा हो जाता है । ऐसे पशु गाभिन होने में असमर्थ रहते है । ऐसी स्थिति से ग्रस्त पशु को समूह से छांट देना चाहिये ।

2. पशुओं में कार्यात्मक बाँझपन का नि‍वारण :

अप्रत्यक्ष मद: इस परिस्थिति में पशु में मदचक्र (इस्ट्रस साइकिल) सामान्य होता है परन्तु पशु के मद में आने की पहचान नहीं हो पाता क्योंकि ऐसे पशु में मद की अवधि सामान्य (15 घंटे) से बहुत कम (6 घंटे) होती है । इस समस्या के निवारण के लिए दुधारू पशुओं को कम से कम प्रतिदिन 3 बार मद के लक्षणों के लिए जांचना चाहिये ।

मौन मद: यह परिस्थिति दूधारू भैंस में सबसे ज्यादा देखी गई है । इस स्थिति में पशु में मदचक्र सामान्य होता है परन्तु पशु मद के बाहरी लक्षण दिखाने में असमर्थ रहता है जो की इस्ट्रोजन हॉर्मोन के निम्न स्तर के होने की वजह से हो सकता है ।हालाँकि  पशुओं की योनि से तार निर्वहन होता है जो कि पशु के मद में होने को दर्शाता है जिसकी पुष्टि पशुचिकित्सक द्वारा रेक्टल जाँच के माध्यम से करवा सकते है ।

यथार्थ मद में ना आना (ट्रू अनेस्ट्रस): इस परिस्थिति में पशु योन गतिविधियों में असक्रिय होता है जो पशु के मद में ना आने को दर्शाता है । इस समस्या के उत्पन होने के कई कारण है जैसे कि कुपोषण, हॉर्मोनल असंतुलन, जननांगो में जन्मजात असामान्यता, उष्मागत तनाव, पेट में कृमियों का होना, पीत-पिण्‍ड का बरकरार होना जो गर्भाशय के कई रोगों में होता है जिसके अंतर्गत पायोमेट्रा, मम्मीफिकेशन, क्रोनिक मैटराइटिस एवं शीघ्र भ्रूण मृत्यु जैसे रोग शामिल है ।

इसके निवारण हेतु सबसे पहले पशु की अच्छी तरह से शारीरिक जांच करनी चाहिए यदि पशु किसी जन्मजात असामान्यता से ग्रस्त हो तो उसे समूह से छांट देना चाहिये, यदि पशु पायोमेट्रा, मम्मीफिकेशन, क्रोनिक मैटराइटिस एवं शीघ्र भ्रूण मृत्यु जैसे रोगों से ग्रस्त हो तो उनका रोग के अनुसार पशुचिकित्सक द्वारा ईलाज करवाना चाहिए, यदि पशु में कोई समस्या न प्रत्यक्ष हो फिर भी पशु मद में ना आ रहा हो तो उसके लिए पशु का पोषण सुधारना चाहिए एवं कृमिनाशक दवाई देनी चाहिए । देखा गया है की लगभग दो महीने के अन्दर इस प्रबंधन से 70—80 प्रतिशत पशु मद में आ जाते है । इसके बावजूद भी यदि पशु मद ना दिखाए तो तुरन्त पशुचिकित्सक से मदहीन पशुओं के उपचार के लिए संपर्क करना चाहिए ।

विलंबित डिंबक्षरण: यदि डिंबक्षरण (ओवुलेशन) सामान्य समय से देरी से हो तो इस स्थिति को विलंबित डिंबक्षरण कहते है । इस स्थिति में पशु में रिपीट ब्रीडिंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है जिसमे पशु कई बार सही समय पर प्रजनन करने के बाद भी गाभिन होने में असक्षम रहता है । यदि पशु में ऐसी समस्या हो तो तुरन्त पशुचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए ।

सिस्टिक अंडाशय: यह परिस्थिति उच्च दूध उत्पादक गायों में ज्यादा देखी जाती है जिसका औसत पैमाना समूह में 10-20 % है । इस स्थिति से ग्रस्त से ग्रस्त पशु अस्वाभाविक मद दिखाता है जिसमे पशु या तो अत्यधिक कामोत्तेजना में होता है या फिर मद हीन होता है । सिस्टिक अंडाशय की समस्या के कई कारण है :

  • यह अनुवांशिक समस्या हो सकती है ।
  • यह समस्या मूल रूप से शरीर में हॉर्मोन की अव्यवस्थित स्थिति में होती है ।
  • यह समस्या पशु में नीम हकीम द्वारा गलत उपचार के चलते एस्ट्रोजन हॉर्मोन की ज्यादा खुराक देने की वजह से भी हो सकती है ।
  • पशुओं में ज्यादा बरसीम खिलाने की वजह से भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है ।
  • यद्यपि यह अनुवांशिक समस्या है, इस समस्या के निवारण के लिए ग्रस्त पशु को प्रजनन के लिए उपयोग में नहीं लाना चाहिए क्योंकि यह अवस्था माँ से संतान को संचरित हो सकती है और आगे आने वाली पीढ़ी को प्रभावित कर सकती है ।

3. पशुओं में संक्रामक बाँझपन का नि‍वारण :

अनिर्दिष्ट संक्रमण: अवसरवादी रोगाणु जो कि शरीर में पहले से मौजूद रहते है एवं जो आमतोर पर रोगजनक नहीं होते, ऐसे जीवाणु अनिर्दिष्ट संक्रमण का कारण होते है

अंडाशय में सूजन: रेक्टल जाँच के दौरान अंडाशय को असभ्य तरीके से पकड़ने, अंडाशय में संक्रमण होने एवं पीत-पिण्‍ड को हाथ से तोड़ने की वजह से अंडाशय में सूजन आ जाती है । यह समस्या मुख्यतः नीम हकीम या नकली पशुचिकित्सक से पशु के जननांगो की जाँच एवं उपचार करने की वजह से होती है इसके निवारण के लिए किसी भी प्रजनन समस्या या कृत्रिम गर्भाधान के लिए हमेशा पशुचिकित्सक को ही बुलाना चाहिए । नीम हकीम या नकली पशुचिकित्सक से कभी भी पशुओं के जननांगो का परिक्षण नहीं करवाना चाहिए ।

डिंबवाही नलिका में सूजन: यह समस्या मूल रूप से अंडाशय में सूजन एवं संक्रमण के गर्भाशय से डिंबवाही नलिका की तरफ फैलने से संभंधित है । पयोमेट्रा परिस्थिति के उपचार के दोरान लम्बे समय के लिए एस्ट्रोजन हॉर्मोन की ज्यादा खुराक देने की वजह से भी डिंबवाही नलिका में सूजन हो सकती है । इस समस्या की वजह से पशु में रिपीट ब्रीडिंग जैसी परिस्थिति उत्पन हो जाती है ।

गर्भाशयशोथ, गर्भाशयग्रीवाशोथ एवं योनिशोथ: इन सभी समस्याओं के कारण लगभग एक जैसे होते है, जिसके अंतर्गत: गर्भपात, अकाल प्रसव, मृतजन्म एवं कठिन प्रसव होना, जेर का सही समय पर न गिरना,प्रजनन अंगों में संक्रमण की स्थिति होना जो कि आमतौर पर प्रसव के दोरान सफाई का विशेष ध्यान ना रखने की वजह से होता है।

कृत्रिम गर्भाधान के दौरान कीटाणुरहित उपकरणों का उपयोग ना करना  एवं  पहले से गाभिन पशु में फिर से कृत्रिमगर्भाधान करना जैसे सभी कारण सम्मिलित है ।

गर्भाशयशोथ, गर्भाशयग्रीवाशोथ एवं योनिशोथ दुधारू पशुओं में बाँझपन का प्रमुख कारण है इनके निवारण हेतु गाभिन पशुओं का पोषण बेहतर तरीके से होना चाहिए, गाभिन पशु का प्रसव हमेशा साफ सुथरी जगह पर ही होना चाहिए, यदि पशु में कठिनप्रसव जैसी स्थिति उत्पन्न हो तो तुरन्त पशुचिकित्सक को बुलाना चाहिए एवं कभी भी स्वयं मैले हाथो से या गंदे उपकरणों से इस स्थिति को निभाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए,

प्रसव के बाद जेर के गिरने का कम से कम 8-12 घंटो तक इंतजार करना चाहिए एवं उसे हाथ से खींचने का प्रयास नहीं करना चाहिए, पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान करते समय हमेशा कीटाणुरहित उपकरणों का ही उपयोग करना चाहिए एवं कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले यह भी निश्चित करवा लेना चाहिए की पशु पहले से गाभिन न हो ।

विशिष्ट संक्रमण: यह संक्रमण रोगजनक रोगाणुओं की वजह से होता है जो कि पशुओं के पुरे समूह को प्रभावित कर सकता है जिसके कारण पुरे समूह की जननक्षमता पर असर पड़ता है । इसके अंतर्गत ट्रिकोमोनिआसिस, विब्रिओसिस, ब्रुसलोसिस जैसे रोग सम्मिलत है ।

ट्रिकोमोनिआसिस: यह रोग गाय में संक्रमित सांड से प्रजनन के दोरान ट्रिकोमोनास नामक प्रोटोज़ोआ से संचरित होता है । यह प्रोटोज़ोआ गायों में बाँझपन,गाभिन गायों में पहले 3 महीनों में गर्भपात एवं पायोमेट्रा जैसी स्थितियाँ उत्पनन करता है ।

यह प्रोटोज़ोआ संक्रमित सांड के शिश्नमुंडच्छद (प्रीप्यूस) के अन्दर निवास करता है । सांड में एक बार इस प्रोटोज़ोआ का संक्रमण होने से वह सांड हमेशा के लिए संक्रमित हो जाता है एवं गायों के पुरे समूह में प्रजनन के दोरान इस रोग को संचरित करता है ।

दुधारू पशुओं में ट्रिकोमोनिआसिस की रोक-थाम के लिए संक्रमित गाय को समूह से अलग कर देना चाहिए और आने वाले 5-6 मद तक प्रजनन नहीं कराना चाहिए, समूह में प्रजनन के लिए कम आयु के व्यस्क सांड ही रखने चाहिए क्योंकि उनके शिश्नमुंडच्छद का आकार ज्यादा आयु वाले सांड के अपेक्षित छोटा होता ह ।इसलिए कम आयु के व्यस्क सांड के शिश्नमुंडच्छद में प्रोटोज़ोआ ठीक तरह से विकास नहीं कर पाता परिणाम स्वरुप ट्रिकोमोनास संक्रमण के संचरण की संभावना कम हो जाती है, जो सांड समूह में प्रजनन के लिए इसतेमाल किये जाते है उनकी ट्रिकोमोनास के लिए नियमित जाँच करानी चाहिए एवं किसी भी नये पशु को समूह में शामिल करने से पहले उसकी संक्रमित रोगों के लिए उचित तरके से जाँच करानी चाहिए,  गायों में सांड से प्रजनन कराने के स्थान पर कृत्रिम गर्भाधान को अपनाना चाहिए ।

विब्रिओसिस/कम्पायलोबैक्टेरिओसिस: यह रोग गाय में कम्पायलोबैक्टेरिआ फीटस वैनिरियालिस नामक बैक्टेरिआ से संक्रमित सांड या कृत्रिम गर्भधान के दोरान बैक्टेरिआ संक्रमित वीर्य से प्रजनन कराने की वजह से संचरित होता है । इस रोग में अन्तःगर्भाशय में सूजन (एंडोमैटराइटिस), प्रारंभिक भ्रूण मृत्यु एवं गाभिन गायों में गर्भावस्था के दूसरे तिमाही (4-6 महीने) में गर्भपात होता है । संक्रमित गाय के अन्तःगर्भाशय में सूजन होने की वजह से वह गाभिन नहीं हो पाती एवं रिपीट ब्रीडर जैसे लक्षण दिखाती है ।

विब्रिओसिस के निवारण के लिए गायों में सांड के बजाय कृत्रिम गर्भाधान की विधि से प्रजनन कराना चाहिए।विब्रिओसिस की रोक-थाम के लिए पशुओं में प्रजनन कराने से 30-90 दिन पहले टीकाकरण कराना चाहिए और यह टीकाकरण सालाना दोहराना चाहिए ।

ब्रुसलोसिस: ब्रुसलोसिस गाय ब्रुसैला अबोरटस नामक बैक्टेरिआ से होता है जो की गाभिन गाय में गर्भावस्था के तीसरे और आखरी तिमाही में गर्भपात होने का कारण बनता है । यह बैक्टेरिआ मूल रूप से संक्रमित आहार और पानी से संचारित होता है इसके अलावा कृत्रिम गर्भाधान के दौरान संक्रमित वीर्य से और खंडित त्वचा से भी संचारित हो सकता है ।

गाय में इस बैक्टीरिया का एक बार संक्रमण होने से वह जीवन भर संक्रमित रहती है एवं पुरे समूह के संक्रमित होने का कारण हो सकती है इस रोग का उपचार गायों में संभव नहीं है इसलिए इस रोग से ग्रस्त पशु को समूह से छांट देना चाहिए निवारण के लिए गर्भपात मृत बच्चे और जेर को अच्छे से जमीन में गाड़ देना चाहिए, जिस जगह पर गाभिन गाय में गर्भावस्था का समय पूर्ण होने से पहले गर्भपात हुआ हो तो उस गाय को सबसे पहले समूह से अलग कर उस जगह को कीटाणुरहित करना चाहिए,

समूह में नित्य इस बीमारी की जाँच करानी चाहिए एवं जाँच में जिन पशुओं में यह बीमारी स्पष्ट हो जाये ऐसे पशुओं को छांट देना चाहिए, इस बीमारी के बचाव के लिए बछड़ियों में उनके 3-7 माह की आयु में टीकाकरण कराना चाहिए और यदि व्यस्क गाय जो इस बीमारी से संक्रमित न हो एवं जिनमें बचपन में यह टीकाकरण ना हुआ हो तो उनमें भी बीमारी के बचाव के लिए यह टीकाकरण करना चाहिए ।

4. पशुओं में प्रबंधन एवं पोषण से संबंधित बाँझपन का नि‍वारण :

पशुओं में प्रबंधन एवं पोषण से संबंधित कारक बाँझपन का प्रमुख कारण है जिसके अंतर्गत पोषण, पशु में मद की स्थिति की पहचान एवं तनाव सम्मिलित है ।

पोषण संबंधित: प्रजनन के लिए सही मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज पदार्थ, विटामिन एवं पानी की आवश्यकता होती होती है इनमें से किसी भी अवयव के अभाव या अधिक होने से बाँझपन की स्थिति उत्पन हो सकती है ।

विभिन्न विटामिन जैसे विटामिन ए, विटामिन डी ग्रोविट पॉवर (Growvit Power) एवं  खनिज पदार्थ जैसे फोस्फोरोस, कॉपर, आयरन, कोबाल्ट, आयोडीन, सेलेनियम ग्रोमिन फोर्ट प्लस (Growmin Forte Plus) इत्यादि प्रजनन की प्रक्रिया में प्रमुख भागीदारी निभाते है इसलिए दुधारू पशुओं में पोषण संबंधित बाँझपन की रोक-थाम के लिए उन्हें सही अनुपात में चारा और दाना चाहिए इस के साथ साथ पशुओं को प्रतिदिन 50 ग्राम खनिज मिश्रण चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट (Chelated Growmin Forte) चारे में मिलाकर देना चाहिए ।

पशु में मद की स्थिति की पहचान: पशु को मद की स्थिति में सही समय पर ना पहचानने एवं मद रहित पशु को कृत्रिम गर्भाधान करवाने की स्थिति में पशु गाभिन नहीं हो पाता । यह स्थिति पुरे समूह की प्रजनन क्षमता को प्रभावित सकती है इसलिए दुधारू पशुओं को विशेषज्ञ कर्मियों के द्वारा कम से कम प्रतिदिन 3 बार (8 घंटो के अंतराल पर) मद के लक्षणों के लिए जांच करवानी चाहिये एवं सही समय पर ही प्रजनन करवाना चाहिए ।

तनाव संबंधित: विभिन्न तनाव जैसे कि उष्मागत तनाव, ठंड तनाव, चींचड़ एवं पेट में कृमि परजीवी के होने की वजह से पशुओं में बाँझपन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है इसलिए पशुओं को मौसम संबंधित तनाव जैसे की अत्यधिक गर्मी एवं ठंड से बचाना चाहिए । परजीवी समस्या के निवारण के लिए पशुओं को हर 3-4 माह में एक बार कृमिनाशक दवा देनी चाहिए ।

दुधारू पशुओं में बाँझपन होने की स्थिति में पशु मद में नहीं आते जिस वजह से पशु समय रहते गाभिन नहीं हो पाते, परिणाम स्वरुप दो ब्यांत के बीच का समय अत्यधिक हो जाता जो प्रत्यक्ष रूप से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता को कम करता है इसलिए पशुपालक को हर वह उपाए करना चाहिए , जिससे उसके पशुओं की प्रजनन क्षमता कम से कम प्रभावित हो एवं उसके फार्म की ज्यादा से ज्यादा आर्थिक उन्नति हो । ऐसा तभी संभव हो सकता है जब पशुपालक को दुधारू पशुओं में होने वाली बाँझपन की समस्या के कारणों की जानकारी हो।

पशुओं में बांझपन से बचने के लिए कुछ युक्तियाँ :

  • ब्रीडिंग कामोत्तेजना अवधि के दौरान की जानी चाहिए।
  • जो पशु कामोत्तेजना नहीं दिखाते हैं या जिन्हें चक्र नहीं आ रहा हो, उनकी जाँच कर इलाज किया जाना चाहिए।
  • कीड़ों से प्रभावित होने पर छः महीने में एक बार पशुओं का डीवर्मिंग के उनका स्वास्थ्य ठीक रखा जाना चाहिए।सावधिक डीवर्मिंग में एक छोटा सा निवेश,दुग्ध उत्पाद प्राप्त करने में अधिक लाभ ला सकता है।इसके लिए आप पशुओं को नियमित रूप से ग्रौलिव फोर्ट (Growlive Forte) दे सकतें हैं
  • पशुओं को ऊर्जा के साथ प्रोटीन, खनिज और विटामिन की आपूर्ति करने वाला शक्तिशाली और विश्वस्तरीय टॉनिक अमीनो पॉवर (Amino Power) पशुओं के खाने के बाद दिया जाना चाहिये यह गर्भाधान की दर में वृद्धि करता है, स्वस्थ गर्भावस्था, सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करता है, संक्रमण की घटनाओं को कम और एक स्वस्थ बछड़ा होने में मदद करता है।
  • गर्भावस्था के दौरान हरे चारे की पर्याप्त मात्रा देने से और उन्हें ग्रोविट- ए (Growvit-A) खाने के बाद देने से नवजात बछड़ों को अंधेपन से बचाया जा सकता है और (जन्म के बाद) नाल को बरकरार रखा जा सकता है।
  • बछड़े के जन्मजात दोष और संक्रमण से बचने के लिए सामान्य रूप से सेवा लेते समय सांड के प्रजनन इतिहास की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है।

अगर पशुपालक ऊपर बताये गए सभी निर्देशों का पूरी निष्ठा से पालन करें तो अपने दुधारू पशुओं में होने वाली बाँझपन की समस्या का समाधान कर सकता है।पशु प्रजनन से सम्बंधित  कृपया आप इस लेख को भी पढ़ें दुधारू पशुओं में प्रजनन

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Chelated Minerals Supplements for cattle & poultryGrowmin Forte Plus
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A Powerful Chelated  Minerals Supplements for Cattle & Poultry

Composition : Each 500 ml contains:

MHA : 128 gm
Choline Chloride : 64 gm
Lysine Hydro Chloride : 64 gm
Sodium : 450 mg
Phosphorus : 154  mg
Magnesium : 595  mg
Zinc : 216  mg
Ferrous (Iron) : 223 mg
Copper : 160 mg
Cobalt : 206 mg
Manganese : 385 mg
Indications & Benefits  :
Poultry:
  • Improve egg production, egg quality & egg shell quality.
  • To overcome minerals and amino acid deficiency.
  • To overcome leg weakness & summer stress.
  • Improve growth, hatchability & fertility .
  • Should be given in any kind of stress.
  • Improve body mass weight & FCR.
For Cattle:
  • To regularize reproductive cycle and to increase conception rate.
  • Prevents production failure related to nutritional deficiencies.
  • To overcome minerals and amino acid deficiency.
  • Improves fertility in female breeder.
  • Improves semen quality in male breeder.
  • Improves carcass quality.
Dosages:
For 100 Birds:
Broilers : 5-10 ml.
Layers & Breeders : 10-20 ml.
For Cattle :
Cow & Buffalo : 30-40 ml.
Goat, Sheep & Pig : 10-20 ml.
Should be given daily for 7-10 days ,every month or as recommended by veterinarian.
Packaging : 500 ml. , 1 ltr. , 5 ltr.
 

Immunity tonic for cattle & poultryImmune Booster 
इम्यून  बुस्टर

An Ultimate Immunity Builder for Cattle & Poultry

Composition : Each 10 ml contains:

Vitamin – E : 35 mg
Selenium : 10 ppm
Glycine : 100 mg
Amla : 30 mg
Sodium Citrate : 25 mg
Potassium Chloride : 5 mg
Manganese Sulphate : 7.5 mg
Zinc Sulphate : 8.0 mg
Yeast Extract  : 35 mg
Vitamin B 12 : 3 mcg
In a base fortified with immunoactive polysaccharides

Indications & Benefits  :

  • For building resistance power against diseases and stress in cattle & poultry
  • To overcome speedy recovery from viral infection.
  • Treatment of anoestrus due to nutritional deficiency.
  • To increase conception rates after every AI.
  • To prevent ketosis in high yielding animals.
  • To combat lactation stress.
  • For general health and productivity.
  • For optimum follicular growth.
  • To prevent clinical and subclinical infection.
  • Aiding in the recovery after surgical operations.
Dosages:
For 100 Birds :
Broilers : 10 – 15 ml
Layers : 15 -20 ml
Breeders : 25-30 ml
For Cattle :
Cow & Buffalo : 40-50 ml
Goat,Sheep & Pig : 25-30 ml
Should be given daily for 7-10 days or as recommended by veterinarian.

Packaging : 500 ml 1 ltr. & 5 ltr.

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FAQs

Growel Agrovet’s Veterinary Products include a complete range of animal health and nutritional supplements. These cover vitamins, minerals, amino acids, herbal tonics, calcium sources, immunity boosters, milk enhancers, disinfectants, and water sanitizers — all formulated for poultry, cattle, aqua, and other livestock.

Growel Agrovet products are suitable for poultry, dairy cattle, goats, pigs, horses, sheep, pets, and aquaculture species. Each product is tested for safety, bioavailability, and performance in different livestock systems.

Growel Agrovet offers an extensive range of veterinary subcategories:

  • Vitamin & Mineral Supplements– Maintain nutrition balance.
  • Amino Acid & Growth Promoters– Improve growth and feed efficiency.
  • Calcium Supplements– Support bones, eggshell, and milk production.
  • Herbal & Liver Tonics– Enhance metabolism and performance naturally.
  • Respiratory Healthcare Products– Manage CRD and respiratory infections.
  • Immunity Booster Supplements– Strengthen disease resistance.
  • Animal Milk Booster Supplements– Improve lactation and milk quality.
  • Feed Premixes– Used for preparing poultry, cattle, and aqua feed.
  • Water Sanitizers & Disinfectants– Maintain hygiene and biosecurity.
  • Electrolytes & Probiotics– Relieve heat stress and improve digestion.
  • Mycotoxin Binders– Protect feed and gut health.

Growel Agrovet’s products enhance growth, feed conversion ratio (FCR), reproduction, immunity, and yield. Regular use supports healthier, disease-resistant animals and better overall farm profitability.

Yes. All Growel Agrovet formulations are non-antibiotic, herbal, and residue-free. They ensure safe, natural performance without affecting meat, milk, or egg quality.

Most products are water-soluble or feed-mixable. Tonics and calcium supplements can be given directly or mixed with feed or water, while disinfectants and sanitizers are used by spraying or mixing as per label instructions.

Supplements should be used regularly for growth, immunity, stress management, and disease prevention. They are particularly beneficial during heat stress, vaccination, peak production, or recovery periods.

Calcium supplements help in developing strong bones, improving eggshell thickness, and increasing milk yield. They prevent calcium deficiency, leg weakness, and reproductive disorders.

Growel Agrovet’s respiratory healthcare range (like Respiratory Herbs and Viraclean) helps control Chronic Respiratory Disease (CRD), Infectious Bronchitis (IB), and other infections by improving lung function and reducing respiratory distress.

Milk booster supplements are specially formulated to enhance lactation, milk fat percentage, and SNF levels. They contain amino acids, vitamins, and herbal galactagogues that support continuous milk flow and udder health.

Immunity boosters strengthen the animal’s natural defense system, reduce mortality, and ensure faster recovery from diseases or heat stress. They help maintain consistent productivity and health in farms.

Feed premixes are balanced blends of essential nutrients used to prepare complete feed for poultry, aqua, and livestock. They guarantee uniform nutrient supply, reduce formulation errors, and enhance feed conversion efficiency.

Disinfectants and water sanitizers like Viraclean and Aquacure maintain biosecurity by controlling harmful bacteria and viruses in sheds, drinkers, and equipment. Regular use prevents disease outbreaks and ensures a healthier environment.

Yes, most products are compatible and can be used in combination for better results. For instance, pairing an immunity booster with a vitamin tonic or calcium supplement enhances overall animal performance.

You can purchase Growel Agrovet products from authorized distributors, veterinary stores, or directly via the official website: www.growelagrovet.com.

All formulations are developed using premium ingredients and rigorous quality checks. Each batch undergoes laboratory testing to ensure purity, safety, and performance.

No. Growel Agrovet formulations are safe, non-toxic, and residue-free. They do not interfere with regular medications or feed components when used as directed.

Yes. Many Growel Agrovet products are free from synthetic antibiotics, making them suitable for organic and sustainable livestock systems.

Visible improvements in feed intake, health, or productivity can usually be seen within 2–7 days of continuous use, depending on the animal’s health status and management conditions.

Growel Agrovet offers scientifically formulated, field-tested, and result-oriented animal healthcare products. Farmers trust the brand for its innovation, consistent quality, and performance-driven approach across India and abroad.

  • Identify the species: poultry vs cattle vs pigs etc.

  • Identify production stage: growing, breeding, layer/egg, recovery.

  • Identify the need: growth, immunity, organ health, water quality, hygiene.

  • Review the product label for species-specific dosage, usage instructions.

  • If unsure, consult our technical support or your veterinary advisor for guidance.

Yes. Our formulations are designed to be safe across various production systems — from large commercial poultry or cattle operations to smaller farms and even pet/companion-bird setups. Always follow the label instructions and consult your veterinarian if combining with other treatments.

Depending on the product type:

  • Water-soluble supplements: mix into drinking-water according to recommended dosage.
  • Feed-premixes: mix thoroughly into feed at specified incorporation rates.
  • Disinfectants/sanitizers: apply as per usage instructions (spray, dip, drinking-water dose).
  • Tonics/herbal syrups: dose using provided measuring device, often for a defined number of days.

In most cases, yes — many of our supplements are designed to be compatible with vaccines and standard medications. However, when using prescription medicines or during disease outbreaks, always consult your veterinarian before combining. Avoid overdosing or overlapping similar active ingredients.

Water sanitizers (acidifiers + sanitizing agents) help maintain clean drinking-water systems, reduce microbial load, and improve water intake and animal health. Disinfectants, especially broad-spectrum types, help eliminate bacteria, viruses, and fungi on surfaces, feeders, drinkers and housing—crucial for bio-security in commercial and large-scale operations.

You can purchase via our official website, authorised distributors, or our network of veterinary wholesale outlets. Domestic shipping is available across India; overseas shipping is available for export enquiries. Delivery and logistics are managed to ensure timely supply for farm use.

If you are interested in becoming a distributor or dealer of our veterinary product line, please visit the Distributor Enquiry page or call or WhatsApp us at +91-8084792390